लुटे न कोई भामिनी, उजड़े
नहीं सुहाग
खुशियों से दामन भरे, बढे खूब अनुराग
दुआ यही नव-वर्ष पर, देते हैं श्रीमान
खुशहाली चहुँ ओर हो, बुझे वैर की आग
करते हैं नव-वर्ष से, बस इतनी फ़रियाद
दूर रहें इंसान से, कष्ट, दर्द, अवसाद
इतनी खुशियाँ दे हमें, दाता अबकी बार
सदमे बीते वर्ष के, रहें न हमको याद
सब मिलकर पाती लिखें, नये साल के नाम
होते हैं हर वर्ष क्यों, उलटे-सीधे काम
अपनी है ये आरजू, ऐसा हो इस बार
सजा मिले अपराध को, नेकी को ईनाम
नेताओं के साथ हो, जनता का उत्कर्ष
मुखड़े पर मुस्कान हो, सब के मन में हर्ष
भूख-गरीबी दूर हो, नारी का सम्मान
उस दिन होगा देश में, सचमुच ही नव-वर्ष।
आएगा नव-वर्ष फिर, चंद दिनों के बाद
लेकिन बीता वर्ष भी, खूब रहेगा याद
बदली है सरकार तो, बदले अब परिवेश
अमन चैन हो देश में, दूर रहे उन्माद।
उस दिन होगा दोस्तों, अपना तो नव-वर्ष
महल बनेगी झोंपड़ी, मुख पर होगा हर्ष
हर मानव को मिल सके, रोटी, कपड़ा, काम
हम चाहते हैं देखना, जन-जन का उत्कर्ष।
- रघुविन्द्र यादव
५ जनवरी २०१५ |