गये साल को है प्रणाम, है
नये साल का अभिनन्दन
पूजा-अजान के साथ-साथ, होवे भारत माँ का वन्दन
जीवित जंगल और बाग रहें, सुर सज्जित राग-विराग रहें,
सच्चे अर्थों में तब ही तो, होगा नूतन का अभिनन्दन।
चमकेगा फिर से गगन-भाल, आने वाला है नया साल
हिन्दू-मुस्लिम, कट्टरपन्थी, अब नहीं बुनेंगे धर्म-जाल
होंगी सब दूर विफलताएँ, आयेंगी नई सफलताएँ
खुशियाँ पसरेंगी आँगन में, सुधरेंगें बिगड़े हुए हाल।
गुज़र गया है साल पुराना, गाओ फिर से नया तराना,
सिर्फ कलेण्डर ही तो बदला, वही ठौर है, वही ठिकाना।
लोग मील के पत्थर जैसे, अपनी मंजिल पायें कैसे?
औरों को पथ बतलाते हैं, नहीं जानते कदम बढ़ाना।।
इस नये वर्ष में आप
हर्षित रहें,
ख्याति-यश में सदा आप चर्चित रहें।
मन के उपवन में महकें सुगन्धित सुमन,
राष्ट्र के यज्ञ में आप अर्पित रहें।
- डॉ. रूपचंद्र शास्त्री "मयंक"
५ जनवरी २०१५ |