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वही पुराना वक्त
 
कितना भी मनुहार करें पर
अड़ियल, जिद्दी, सख्त
कपड़े नए बदल कर आता
वही पुराना वक्त।

सीधे सच्चे रस्ते पर भी
चलता टेढ़ी चाल यकायक
मंजिल से बस कुछ पहले ही
देता अंधे मोड़ अचानक
कहता अपनी उठापटक को
'सब तेरा प्रारब्ध'
कपडे नए बदल कर आता
वही पुराना वक्त

कड़ी चौकसी सघन सुरक्षा
पर आतंकी काल रूप से
झिर्री और दरारों से ही
घुस आते हैं हवा धूप से
परिवर्तन की उम्मीदों का
सूखा आज दरख़्त
कपडे नए बदल कर आता
वही पुराना वक्त

नफरत की इस सर्द लहर में
प्रेम धूप पर घिरा कुहासा
दाँत नुकीले हुए धरम के
जिह्वा पर है लहू पिपासा
फिर मज़हब के मुँह से टपका
मज़हब का ही रक्त
कपडे नए बदल कर आता
वही पुराना वक्त

रोज जगाता सुई चुभा कर
हिला डुला कर सच दिखलाता
मरुथल में जब नीर दिखे तो
रेत उड़ा कर भरम मिटाता
पर हम भूल समय की फितरत
सपनों पर आसक्त
कपड़े नए बदल कर आता
वही पुराना वक्त

- संध्या सिंह
२९ दिसंबर २०१४

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