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नये वर्ष की झोली
 
काल चक्र को रोक के मैंने
पूछा बारम्बार
नये वर्ष की झोली में क्या
भेज रहे इस बार।

बरसों से धरती के अँगना
बरबस फैल गया आतंक
दया विनय बनवासी हो गए
पाप पुण्य में छिड़ गई जंग
कोई न भेजी सीख अमन की
जीये, भोगे सुख संसार।

किसी के सर पर खाली छप्पर
खड़े किसी के महल चौबारे
कहीं मिले ना रूखी सूखी
बँटें कहीं पर दूध छुहारे
समता की पुड़िया भिजवाना
चख लें सारे साहूकार।

खुशहाली की बजे दुंदुभी
शुभ मंगल का गूँजे नाद
चैन की बंसी गाँव गली में
नेह छंद में गीत निनाद
बाँध के प्रेम तराने देना
जुड़ जाएँ मन के सब तार।

- शशि पाधा
२९ दिसंबर २०१४

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