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बीत गया वह वर्ष पुराना
 
जिसको हमने अपना माना
रात दिवस था आना जाना
चल दिया वो बिन किये बहाना
बीत गया वह वर्ष पुराना

कितनी दूर निकल आये हम
उसके संग संग चलते चलते
कितने सूरज देखे हमने
सुबह निकलते सन्ध्या ढ़लते
वो ही चल दिया मीत पुराना
बीत गया वह वर्ष पुराना

जिसकी आँखों में थे सपने
जिसकी साँसों में थे अपने
जिसको हमने प्रीत कहा था
हार को जिसकी जीत कहा था
टूट गया वह स्वप्न सुहाना
बीत गया वह वर्ष पुराना

कितनी मुस्कानें दी हमको
दर्द मगर चुपचाप दे गया
गठरी बाँधे चला बटोही
यादों की पदचाप दे गया
खड़ा देखता रहा ज़माना
बीत गया वह वर्ष पुराना

- सुरेन्द्र शर्मा
२९ दिसंबर २०१४

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