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       चाहतों की डोर से

 
बाँध अपनी चाहतों को डोर से
छेंक लेना आसमाँ हर ओर से

जब कभी उंगली उठे जो आन पर
छाँट दो उठती ज़ुबाँ हर छोर से

काटना चाहे तेरे जो पर कहीं
जोश भर परवाज़ में हर पोर से

मत कभी कमज़ोर होना हार से
पोंछ लेना आँसु तू हर कोर से

हिम्मते मरदे मदीना याद रख
जम के लड़ना तू उठे हर शोर से

- सरस दरबारी
१ फरवरी २०२१

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