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        नभ में उड़े पतंग

 
उत्सव में खुशियाँ बढ़ें मिल अपनों के संग
रंग जमें तब और भी नभ में उड़े पतंग

नभ तक खुशियाँ बाँटते सब लोगों के साथ
विविध पतंगें जब उड़ें डोरी मांझा हाथ

मन पतंग उड़ता रहे इच्छाओं के लोक
मन ही डोर संभालता अंकुश बन सब रोक

मस्त गगन में उड़ चले लहरा फिरे पतंग
कट कर गिर जाती कभी होता तब रस भंग

उड़े गगन या कट गिरे बाँटे खुशी पतंग
जीवन पर हित वार दे सच्चा वही मलंग

- ज्योतिर्मयी पंत
१ फरवरी २०२१

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