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       तंग सी पतंग हूँ मैं

 
तंग सी पतंग हूँ मैं
उड़ हवा में डोलती हूँ
बह रही हूँ मैं पवन संग
प्रेम का रस घोलती हूँ

मैं बला की खूबसूरत
मौन ना बैठूँगी अब मैं
उड़ गगन में मग्न हो कर
भर लूँ सुख बाहों में सब मैं
मैं कटा कर डोर अपनी
व्यर्थ रज में रोलती हूँ

सींक बाँसों की चुभा कर
मेरा ये निर्माण कैसा
चहुँ दिशा में दौड़ती हूँ
देख मेरा खेल ऐसा
मैं ऊँचाई उस फ़लक की
छूती हूँ टटोलती हूँ

मैं रंगी तेरे ही रंग में
नार हूँ रंगना पड़ेगा
जितने चाहे रंग भरले
रंग हर भरना पड़ेगा
कौन भारी है जियादा
डोर तेरी तौलती हूँ

हाथ में ये डोर तेरे
बोलती हूँ खींच भी ले
ये फ़लक भी मसख़रा है
ले बरसते इस से ओले
मौन पीड़ाएँ हैं मुखरित
मैं सभी को मोलती हूँ

- आभा सक्सेना 'दूनवी'
१ फरवरी २०२१

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