अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

       अपनी पतंग

 
अपनी पतंग उड़ाओ
आसमान देखकर
संग साथ गुनगुनाओ
आसमान देखकर

जब भी उड़ाओ दूर तक
दिखती रहे पतंग
हाथों में नियंत्रण हो
चरखी हो संग संग
तिल ताड़ मत बनाओ
आसमान देखकर

थोड़ी सी ढील से ही
घूमेगी चारों ओर
फिर देखते ही यों ही
कट जाएगी ये डोर
अपनी पतंग उड़ाओ
आसमान देखकर

- कमलेश कुमार दीवान
१ फरवरी २०२१

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter