अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

       उड़ीं पतंग

 
मौसम बदला
और धरा पर बिखरे रंग
आसमान में रंग-बिरंगी उड़ीं पतंग

आँखें भले उनींदी
सपने तारी हैं
हम नखरीले सूरज के आभारी हैं
छूते ही किरणों के
मन में उठीं उमंग
आसमान में रंग-बिरंगी उड़ीं पतंग

हरी गुलाबी लाल बैंगनी
पीली हैं
सब की सब अलबेली हैं चमकीली हैं
देख -देख इनके रंगों को
दुनिया दंग
आसमान में रंग-बिरंगी उड़ीं पतंग

जागी गलियाँ
जागे सभी मुहल्ले हैं
मचा हुआ है शोरमचे हो-हल्ले हैं
छिड़ी हुई आपस में
शब्दों वाली जंग
आसमान में रंग-बिरंगी उड़ीं पतंग

आपस में लड़ते -लड़ते
ये टूटेंगी
निश्चित ही अपनी डोरी से छूटेंगी
लूटेंगे सब सजे-धजे
या नंग-धड़ंग
आसमान में रंग-बिरंगी उड़ीं पतंग

- डा. रामेश्वर प्रसाद सारस्वत
१ फरवरी २०२१

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter