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       तुम पतंगों की तरह

 
तुम पतंगों की तरह
बेबाक़ उड़ना
किसी अंजाने सफ़र पर
बिना मक़सद
निकल पड़ना
बला से कुछ मिले या फिर
गँवा बैठो
मत ठिठकना

बस मलंगी मन किये
मस्ती लिये
हर आँख में रंगो भरा
संसार रचना
डोर कोई हर घड़ी
बेशक तुम्हें
बाँधे रहेगी
उँगलियों में ठुनकियाँ भर
चाल पर
पहरे धरेगी
पर लहरना छोड़ना मत
मोड़ना मत पाँव
डगमग डोलना फिर फिर संभलना

राग या बैराग जैसे
झंझटों को
पालना मत
झुकावों या उठानों का
सिर्फ़ स्वागत सिर्फ़ स्वागत
कौन जाने कौन सा पल
घना बादल
हो मगर अंतिम प्रहर तक
‘इति’ न कहना

- सीमा अग्रवाल
१ फरवरी २०२१

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