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						 गुरु बिन होय न ज्ञान 
						कहा तुलसी ने 
						बोले कबीर गुरु तो है 
						गोविन्द से भी महान 
						सच ही तो कहा उन्होंने 
						अगर न मिलते 
						राम को वशिष्ठ तो 
						राम भी कहाँ बन पाते राम 
						 
						मेरे जीवन की डगर भी 
						होती नहीं रोशन 
						अगर मुझे मिलते न गुरु 
						देते नहीं ज्ञान का दीप 
						यों तो किताबें होती हैं 
						ज्ञान का आगार किन्तु 
						मिलते न गुरु तो 
						धरी रह जातीं किताबें 
						होता नहीं अक्षर ज्ञान। 
						 
						गुरु मिलते हैं आश्रम में 
						जैसे मिले राम को वशिष्ठ 
						मिलते हैं गुरु पाठशाला में 
						जैसे मिले मुझे  
						किन्तु 
						दुख से बड़ा कोई गुरु नहीं 
						मुझे दुख ने मुझे तपाया इतना कि 
						कंचन सा निखर गया जीवन 
						सदगुरु ही होता है दुख 
						 
						- उर्मिला शुक्ल 
						१ सितंबर २०२४  |