अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

वसंत

 

  गमों की आँधी में,
उजड़ गया मेरे मन का चमन
अब मुझे चाहिए
खुशियों से हँसता वसंत।

कल के अंधेरों में,
खो न जाए आज-कल
अब मुझे चाहिए
उजालों से निखरा वसंत।

तन संसारी हो, मेरा
मन हो जाए संत
अब मुझे चाहिए
दानिशों से दिखता वसंत।

दिन जैसे निखरे,
जीवन साँझ जैसे जाए ढल
अब मुझे चाहिए
मसीहों से मिलता वसंत।

मेरे मन की खुशबू से,
महक जाए दिग-दिगंत
अब मुझे चाहिए
गुलाबों से खिलता वसंत।

फिर न कोई तोड़ पाए,
मेरे सपनों का महल
अब मुझे चाहिए
हौसलों से चलता वसंत।

'मीना' जगत में,
इच्छाएँ हैं अनंत
अब मुझे चाहिए
कोशिशों से सजता वसंत।

-डॉ मीना कौल

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter