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राखी के दो तार

रक्षाबंधन

भेज रही भैया तुम्हें, राखी के दो तार,
बन्द लिफ़ाफ़े में किया, दुनिया भर का प्यार।

भेजी पाती नेह की, शब्द पुष्प के हार,
छोटी बहना कह रही, कर लेना स्वीकार।

रूठे भैया की करूँ, मैं सौ सौ मनुहार
शायद रूठे इसलिये, आ न सकी इस बार।

सावन बरसे आंख से, ब्याही कितनी दूर,
बाबुल भी मजबूर थे मैं भी हूँ मजबूर।

भैया खत भेजा नहीं, ना कोई संदेस,
लो सावन भी आ गया, बहन बसी परदेस।

भाई, बाबुल रो रहे, बहना भी बेज़ार,
माँ की भी रुकती नहीं आंखों से जलधार।

- रमेशचंद्र शर्मा 'आरसी'
६ अगस्त २०१२

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