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			शुभ हो यह संक्रान्ति  | 
           
          
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						सूरज, बादल, महल, मनारे 
						धुंध पसर गई, छुप गए सारे 
						 
						शुभ हो यह संक्रांति सभी को 
						आज पुत्र घर पिता पधारे 
						 
						दान-पुण्य के साथ कर्म भी 
						देख रहा रब, सुन मितवा रे! 
						 
						पौष कट गया, माघ बता तूँ 
						खीसे में क्या रखा तुम्हारे 
						 
						स्वेटर से रिश्ते होते हैं 
						इक-इक फंदा जाय बुना रे! 
						 
						गजक, रेवड़ी, 'रीत' कह रही 
						मीठे हों तो भाते, प्यारे! 
						 
						- परमजीत कौर 'रीत' 
						१ जनवरी २०२४ | 
					 
				 
			 
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