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          घुमंतू महाराज

 
घुमंतू महाराज
श्री श्री १००८, स्वामी सूरजानन्द
यात्रा करते करते ब्रह्मांड की
बारह घर से गुजरते हुए
पधारे हैं अपने मकर भवन में

बड़े चमत्कारी!
भ्रमण का भ्रम देते
और नचाते जगत को
इनका गुस्सा ऐसा
आँखें तरेरी
तो धरणी काँप गई ठिठुरन से!

फिर छोड़ गए ओढ़ने को दुशाले
काले ब्लैक-होल से मुड़ते स्वामी
काले तिल से जुड़ते
तो अरमान हृदय के पतंग बन उड़ते
लंबे लंबे किरण पुंज सा गन्ना चूसते मानव
पर अनाथ बालक मक्के की रोटी हाथ में लिये
दान में मिले कंबल में घुस गए
जैसे अबोध भोले शिशु माँ के आँचल में छुपकर
स्तनपान के लिए लपके।

गरम पिंड की खिचड़ी और लावा का घी
प्लाज्मा गैस में आयनिक कणों की छौंक
कृपा-प्रसाद मिला हमें घी खिचड़ी में।

- हरिहर झा
१ जनवरी २०२४

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