अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

          मैं हूँ मकर संक्रान्ति

 
मैं हूँ मकर संक्रान्ति
सूर्य के उत्तरायण का शुभारंभ

उत्तर भारत की माघी
दक्षिण भारत की पोंगल
मैं पर्व हूँ आराधना का
ब्रह्मा, विष्णु, महेश, आदि शक्ति और सूर्य का।

मैं विजय पर्व हूँ
इसी दिन देवी संक्रान्ति ने
शंकरासुर को परास्त
और किंकरासुर का वध किया
भगवान विष्णु ने असुरों का अंत कर
युद्ध समाप्ति का उद्घोष किया

मैं पिता-पुत्र के नैकट्य का प्रमाण हूँ
सूर्य देव पुत्र शनि के घर इसी दिन पधारे थे
मैं मिलन संदेश हूँ
इसी दिन गंगा जी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर
कपिल ऋषि के आश्रम से होकर
सागर से जा मिली थीं

मैं वरदान हूँ इच्छा पूर्ति का
इसी दिन यशोदा ने कृष्ण प्राप्ति के लिये
व्रत किया था
मैं यातनाओं से मुक्त करती हूँ
शर- शैय्या पर लेटे भीष्म पितामह ने
इसी दिन देह त्यागी थी।

मेरे प्रभाव से
आत्मा शुद्ध होती है
संकल्प शक्ति बढ़ती है
अनुकूल फल मिलते हैं
ज्ञान तंतु विकसित होते हैं
नकारात्मकता नष्ट होती है

- डॉ. मधु संधु
१ जनवरी २०२४

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter