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			यशोदा माँ-सी संक्रान्ति  | 
           
          
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						बहु ने सास-ससुर को जगा के 
						स्नानादि करा, नव बिस्तर पर बिठाके 
						पैर छूकर तिलक लगा के 
						वस्त्र धन आदि देकर 
						प्रेम संबंध का मान बढ़ाके 
						माँ यशोदा की रीत निभाकर 
						संक्रान्ति मनायी 
						 
						उत्तर की ओर प्रस्थान करते रवि  
						भीष्म का प्रण निभाने 
						सुत शनि के घर मकर को गए 
						पिता-पुत्र का मिलन देख  
						संगम, गंगा, गंगासागर पर 
						स्नान दान व्रत उपवास अनुष्ठान हेतु 
						दुनिया भर से भक्त जुटे 
						खिचड़ी तिल लड्डू बाँट कर 
						रिश्तों की मिठास बढ़ाकर 
						जग ने संक्रान्ति रचायी 
						 
						आसमान की ऊँचाई नापने 
						बाल, युवा, बूढ़े बड़े छत- मैदान से 
						रंग -बिरंगी आशाओं की पतंग उड़ाकर 
						जीतने हेतु संघर्षों के पेंच लगा  
						यह काटा वो काटा की गूँज में 
						यत्न भगीरथ का जिसने आजमाया 
						ऊँचाइयों पर उसकी पतंग ने 
						बचपन को जिंदा करके 
						संक्रान्ति सजायी 
						 
						- डॉ. मंजु गुप्ता 
						१ जनवरी २०२४ | 
					 
				 
			 
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