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            संक्रान्ति पर्व

 
माघ किरण उत्सव आए
तुम भी आ जाना रे
तिल गुड़ खा जाना रे

रूठ गई है धूप चाँद सा
सूरज दिखता है
हवा बहे बर्फीली
मौसम खुशबू लिखता है
गाँव गाँव चौपाल जहाँ
कौड़ा सुलगाना रे

चादर ओढ़ धरा चुप चुप सी
गुम सुम हैं नदियाँ
धारा थमी थमी सी रहतीं
चुप चुप है सदियाँ
गली-गली की बात जहाँ
हर एक उगलता है
सूर्य लाए संक्रांति जहाँ
तिल-गुड़ खा जाना रे

- कमलेश कुमार दीवान
जनवरी २०२४

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