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माघ की खिचड़ी
 
बालकनियाँ
रोकती हैं धूप का रस्ता
धूप किस इस्टूल पर रक्खे
किरन के बोझ का बस्ता

धूप ने टाँगा किरन को
या किरन ने धूप
पास आ फटकारती है
द्वंद्व का निज सूप

मात्र इतना काम करके ही हुई है
धूप की, हालत यहाँ खस्ता

धूप को मुहलत मिले
करती हवा से बात
यहाँ पहले से हमारे
सर्द हैं हालात

कौन लेकिन है हमारे हाल-ओ-
हालात से भी आज बावस्ता

शाम तो है दूर
पर जल्दी मचा रखती
बस, ज़रा-सी गुनगुनाहट-
में फँसा रखती

धूप महँगी हो गई है
छाँव का आना हुआ सस्ता

ठिठुरता संकल्प-जल
औ' माघ की खिचड़ी
जीतता सद्भाव
दूषित भावना पिछड़ी

स्वर्णपात्रों पर न साधो!
फेरिएगा छद्म का जस्ता

- पंकज परिमल
१५ जनवरी २०१७

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