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खूब हुई संक्रांति हमारी
 
गंग नहाए
दान किया फिर गही चाय की प्याली
खूब हुई संक्रांति हमारी खिचड़ी तिलकुट वाली।

इधर हवा ने ठिठुरन बाँटी
उधर वकों की टोली काँपी
इधर नाव लेती हिचकोले
उधर गूँजती जय बम भोले
इधर मंत्र पढ़ते हैं पंडे
उधर सुलगते कंदी कंडे
दूर दूर तक छाया कोहरा
ओढ़ रहे सब कंबल दोहरा

आन बान में
सकराते की सर्दी देती ताली

गली सज गयी मंदिर चमके
दौड़ रहे बच्चे सज सध के
उड़ी पतंगें आसमान में
छतें रौनकें खान पान में
छाछ बाजरा खिचड़ी बाटी
मक्खन मिसरी किसे न भाती
लाई पट्टी सजी हाट में
बात बातंगड़ बिछी खाट में

गरम पूरियाँ
छान रही है अम्मा नुक्कड़ वाली

- पूर्णिमा वर्मन
१५ जनवरी २०१७

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