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उत्तरायण हुए भास्कर
 
उत्तरायण हुए भास्कर
भक्त नहाए गंग
उम्मीदों की नयी डोर से
लो उड़ चली पतंग

रग रग में जागी है ऊर्जा
शिशिर गया है खिल
एहसासों के गुड़ में लिपटे
सोंधे सोंधे तिल

थक्के थक्के दही जम रहे
लिए गुलाबी रंग

आसमान में ठनी लड़ाई
किसका माँझा तेज
बढ़ी काटने की चतुराई
इसका उसका पेंच

पोहा खिचड़ी तिलपट्टी में
उमगे नयी उमंग

- ऋता शेखर ‘मधु'
१५ जनवरी २०१७

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