अमानिशा की दुनिया उजड़ी
तम झाँके बगलें
ज्ञान के जगमग दीप जले
गाँव गैल वन-उपवन पनघट
दीप छटा बिखरे
नगर चौक घर हट सरित-तट
मंगल रूप धरे
दिव्य सभा अनुपम ज्योतिर्मय
गगन वितान तले
संसृति के श्रीमुख पर हरियल
घूंघट पट लहरे
दीन जनों की पर्णकुटी में
'देवि श्री' ठहरें
सदियों से सूने नयनों में
सुखप्रद सपन पलें
जातिभेद और रंग द्वेष का
तिल तिल तिमिर जरे
समता विश्व बंधुता करुणा
आँगन प्रति उतरे
झिलमिल हों अंतर्मन हिलमिल
जनगण संग चलें
--रामशंकर वर्मा
१२ नवंबर २०१२ |