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नील थाल में दिये

   



 

साँझ ढलती जा रही है
खिल रही है चाँदनी
मदिर-मदिर सुधियों में
नहा रही है यामिनी

शाख-शाख, पात पात
मन्द-मन्द डोलती
लाज नत शिरीष की
पंखुरी को खोलती

ठिठक गई है वातास
गन्ध पंथ गामिनी

निलय लीन पंछियों की
अलस-अलस काकली
मधुर कल के स्वप्न में
विभोर झूमती कली

तार-तार गूँजती है
शहद पगी रागिनी

झिलमिलाते दीप की
थरथरा रही शिखा
मौन में भी हलचलें
हैं ये बता रही दिवा

नील थाल में दिए
सजा रही है यामिनी

- मधु प्रधान
१५ अक्तूबर २०१६
   

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