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जल रे दीपक

   



 

जल रे दीपक हौले हौले

चाहे तिमिर बढ़ाए घेरा
हटे न मन का कभी उजेरा
सत्य दीप से तन बुहार कर
मन की बात सभी से कह ले
अब नहिं कोई तम से दहले
जल रे दीपक
हौले हौले

हरदम तूफ़ानों से लड़ता
लौ फफका कर आगे बढ़ता
निष्ठा की वर्तिका बाल कर
उजियारे की नदी में बह ले
हिम्मत की पतवारें गह ले
जल रे दीपक
हौले हौले

- डॉ. सरस्वती माथुर
१५ अक्तूबर २०१६
   

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