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कैसे गायें गीत उजालों के

   



 

फूल-फूल पर फन फैले हैं काले व्यालों के
ऐसे में हम कैसे गायें गीत उजालों के

क़दम-क़दम पर
आतंकी मौसम का डेरा है
काले मेघों ने अवनी-अम्बर को घेरा है
घूम रहे साये सन्नाटों के
रखवालों के

सूरज-चाँद
पड़े हैं बेबस कारागारों में
दीपों की गिनती है शलभों के हत्यारों में
रोशन हैं घर सिर्फ़ हुजूरों
और दलालों के 

वर्तमान तो
अपनी मौजों में है तैर रहा
भूतकाल भी बीते सपनों की कर सैर रहा
किन्तु भविष्यत् को हैं लाले
पड़े निवालों के

पैंसठ साल
गये होरी का कर्ज़ न माफ़ हुआ
अलगू औ’ जुम्मन के मन का मैल न साफ़ हुआ
लोकतंत्र पर लटके हैं वेताल
सवालों के 

- ब्रह्मजीत गौतम
१ अक्तूबर २०१७
   

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