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         खुशियाँ रोज पलें

   



 

दूर करें हम गलतफहमियाँ
मिलकर आज गले

फैली हुईं विसंगतियों को
सोच-समझ अपनायें
सुप्त पड़ी मानवता को फिर
आओ चलो जगायें
हो हर्षित अब यह अंतरतम
दुविधा सभी टलें

नन्हे हाथों में लौटी हैं
सतरंगी फुलझड़ियाँ
अँधियारों को जीत रही हैं
उम्मीदों की लड़ियाँ
मुँह की खाकर विवश निराशा
अपने हाथ मले

ले आयी है साँझ सजाकर
दीपों वाली थाली
हँसियों और हथौड़ों की हो
जगमग हर दीवाली
इस धरती पर त्योहारों की
खुशियाँ रोज पलें

- योगेंद्र प्रताप मौर्य
१ नवंबर २०१८

   

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