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       दीप हमें सिखला गयो

व्यर्थ कभी जाता नहीं, किया गया संघर्ष।
अँधियारे में दीप ने, हँस - हँस बाँटा हर्ष।।

नन्हें दीपक ने दिया, एक बड़ा सन्देश।
सदा फैलती त्याग की,अनुपम कीर्ति अशेष।।

रखा ध्यान में लक्ष्य को, और जला अविराम।
एक दिए ने कर दिया, तम का काम तमाम।।

लाख गुना हो आयतन, मीलों हो विस्तार।
हुई दीप के सामने , अँधियारे की हार।।

जला आखिरी साँस तक, खूब निभाया धर्म।
दीप हमें सिखला गया, क्या होता है कर्म।।

मैं हूँ वंशज सूर्य का ,तम को हरना काम।
नन्हा-सा मैं दीप हूँ, जलता हूँ अविराम।।

जलकर रोशन कर गया, जग में अपना नाम।
दीपक आया किस कदर ,मानवता के काम।।

मिला दीप की ज्योति से,ऊर्ध्व गमन का बोध।
केवल ज्ञानी कर सका, इसी द्रष्टि पर शोध।।

रत्तीभर आया नहीं, अँधियारे को रास।
दीपक ज्योति प्रकाश ने, मिलकर रचा उजास।।

जली वर्तिका दीप में , अपना नेह निचोड़।
अँधियारा पीछे हटा, अपने हाथ झिंझोड़।।

जगर- मगर दीपक जले, हरे कलुष, तम, शोक।
जैसे प्राची से निकल , तम हरता आलोक।।

- मनोज जैन "मधुर"

१ नवंबर २०२०
 

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