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       चलो जलाएँ दीये

चलो जलायें दीये प्रेम के
मन के काले कोने में

समय काटने से अच्छा है
मेलजोल में समय बितायें
गम के गुस्से वाले मुख पर
हल्दी-दधि का तिलक लगायें

चलो बितायें समय सुनहरा
हँसी-खुशी को बोन में

तुलसी-गोवर्धन से पहले
घर के पीछे दीपक रखना
गूंगे की भाषा में रुक कर
जी भर उसके मन की सुनना

चलो सजाएँ बंद दुआरे
समय न खोयें रोने में

चमक चाँदनी की बातों में
अपने मन कुंठा मत भरना
रात घनी आने से पहले
खुद ही बनना उजला झरना

चलो उछालें खील-बताशे
बीत न जायें सोने में

- कल्पना मनोरमा

१ नवंबर २०२०
 

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