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         एक दीपक तुम जलाओ

एक दीपक तुम जलाओ
तम घनेरे को मिटाना है
एक कतरा रौशनी भर
दृढ़ इरादे जगमगाना है

सुप्त आशाएं हुई है
ग़म खड़ा दीवार बनकर
रंग कूची, धूप तिनका
तुम उकेरो चित्र सुंदर
हिम बने संवेग सारे
नेह बाती, नित जलाना है

यह घनेरी रात काली
ताप भरता है तिमिर हर
भोर का स्वर्णिम उजाला
फिर रचेगा दृश्य मनहर
रात की तुम माँग भर दो
जुगनुओं सा टिमटिमाना है

फिर शहर में शोर होगा
गाँव चौपालें हँसेगीं
मुफ़लिसी दुर्दिन समय की
पर सलीबों पर टँगेगी
वक्त माना है कठिन पथ
हौसलों का आशियाना है

- शशि पुरवार

१ नवंबर २०२०
 

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