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         दीवाली के बीत गये दिन

सुख के, दुख के मधुर मिलन के
दीवाली के बीत गये दिन

दीप तैरता रहा रात भर
झरता रहा उजास
थोड़े परिवर्तन से होता
मंत्रमुग्ध आभास
अँधियारे में चिपके पलछिन
फिसले और मुस्काये
जान लिया मैं गीत हुये दिन!!

बहती हुई हवा कहती है
अभी डायरी पढ़ आयी हूं
भुला अतीत के सारे पन्ने
पृष्ठ नया इक गढ़ लायी हूं
तरह-तरह के चेहरे आखिर
भ्रम ही तो पैदा करते हैं
जाने कहाँ छुपे रहते हैं
आखिर लोग यही कहते हैं
सच में अब तो भीत हुये दिन

संघर्षों का बिगुल बज रहा
ना जाने क्या समाधान है
अंतस में फैले प्रकाश को
खोज रहा अब संविधान है
रोज चढ़ाई चढ़ते-चढ़ते
कई शिखर तो पार कर गये
लगता है अब रीत गये दिन

इस लॉकर में डाल रखे हैं
मैंने कई तरह के सपने
हलकी हँसती हुई बात को
कहने वाले भी हैं अपने
कहने दो अनसुना मत करो
एक दिन जब तूफान थमेगा
तभी जानना मीत हुये दिन

- श्रीधर आचार्य "शील"

१ नवंबर २०२०
 

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