अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

     

         लाडली कंदील

कितनी रंगों में ये सज कर लाड़ली कंदील
कर रही है लक्ष्मी की बंदगी कंदील

हर तरफ फैला रही है रोशनी कंदील
खुशनुमा करती है सबकी जिन्दगी कंदील

रात हो बेशक भयानक फिर भी ये बे ख़ौफ़
झोपड़ी में महल में शब भर जली कंदील

अपने बच्चों की खुशी के वास्ते ही तो
टाँग दी है हमने अपने घर बड़ी कंदील

ग़मज़दा लोगों को आखिर दे गई संदेश
किस तरह जलते हुये भी खुश रही कंदील

रात मावस की थी काली घुप अँधेरा था
और उनके सामने तन कर खड़ी कंदील

हर किसी के मन को कितनी भा रही है ये
लाल पीली बैंगनी नीली हरी कंदील

- राम अवध विश्वकर्मा
१ नवंबर २०२१

     

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter