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         एक कंदील हूँ मैं

एक कंदील हूँ मैं
तमस के लिये

अँधेरा मिटे रोशनी से मेरी
रात काली भी मुझ से हमेशा डरी
हो सुहानी सुबह बस यही चाह है
कंटकों से रहित सामने राह है
दीप छोटा-सा मुझमें सदा ही जला
जा रही हूँ मैं बस इक
बरस के लिये

तुझमें नीले गुलाबी सभी रंग हैं
ढेर सारे उजाले तेरे संग हैं
तू बहुत हमको भाती रही है सदा
तेरी दिलकश हमें लग रही हर अदा
तू बहुत प्यारी हम को मेरी ‘लाडली’
आना अगले बरस
इक दरस के लिये

हों पटाखों की करतल ध्वनि मौन में
ना उजाला भी पूछे बता कौन मैं?
घर में लक्ष्मी विराजें हो संपन्न सब
बरसे चहुँ ओर धन और बस अन्न अब
आए दीवाली हर साल मेले लगें
चाह मन में यही इस
दिवस के लिये

- आभा सक्सेना दूनवी
१ नवंबर २०२१

     

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