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         रौशन हो कंदील

रहे ज़िंदगी जगमग
घर-घर रौशन हों कंदील

जातिवाद, पाखण्ड अशिक्षा
तोड़ सभी अवरोध
विगत द्वेष की भूल कहानी
करें लोकहित शोध

संवेदन को गटक न जाए
स्वार्थवाद की चील

जलें दीप आँगन ओसारे
घर-घर देहरी द्वार
वंचित रहने एक न पाए
तम की भरे दरार

रहें उदर संतृप्त, भूख का
नृत्य न हो अश्लील

उन प्रश्नों का समाधान हो
जीवन का जो मूल
खुली आँख के स्वप्न विवशता
कर नहिं सके उदूल

हों समष्टि में दृश्य खुशी के
फैले मीलों-मील

- अनामिका सिंह
१ नवंबर २०२१
     

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