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         कंदीलें दूर गगन में

उड़ती जाएँ कागज की
कंदीलें दूर गगन में

ज्योति दिये की किरन बिखेरे
जगमग करती जाएँ
हौले से बाली, जो हमने
वे कंदील लुभाएँ

आस जगाएँ, हर मन की
कंदीलें दूर गगन में

लंबी, गोल, चौकोर, तिकोनी
सबके मन को भाएँ
मन तो करे उड़ें संग इनके़
आसमान तक जाएँ

दिप दिप करती हर रंग की
कंदीलें दूर गगन में

- आरती मिश्रा
१ नवंबर २०२१

     

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