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         यादों की कंदील

सुलग उठी है अचानक
यादों की कंदील

धीरे-धीरे पास आ रहा पर्व दिवाली
कर डाला है मँहगाई ने खाता खाली
गौरैयों का झुंड है
आँख गड़ाए चील

लिपे-पुते आँगन हैं सजी हुई दीवारें
पुलकित-सी-दिखती
-हैं-नदिया-की-सब-धारें
गाँव-गाँव में बँट रहे
फूल बताशे-खील

छूटे पटाखे और धुआँधार पर्व हुआ
उन्नति की सीढ़ी पर चढ़े हमें गर्व हुआ
हवा में प्रदूषण से
गुमसुम है झील

- अविनाश ब्यौहार

१ नवंबर २०२१

     

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