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         सुधियों की कंदील

घोर अमावस
भरी विशद जल
से नयनों की झील
तैरती सुधियों की कंदील!

खा-खा पवन झकोरे उठती
गिरती पस्त हिलोर
चंचल चित को कौन चुराता
छुपकर छलिया चोर
बंद खिड़किया
से पढ़ मंतर
कौन गया है कील
तैरती सुधियों की कंदील

रह-रह कौन परीक्षा लेता
कंपित होता धीर
तनिक कुरेदो तो जग जाती
जन्म-जन्म की पीर
प्यासी बेसुध
हिरनी भटके
रन में मीलों मील
तैरती सुधियों की कंदील

सपनों की दुनिया भी करती
अपना कर्ज वसूल
और उजालों के भी होते
अपने चंद उसूल
उम्मीदों पर
भारी पड़ती
थैली भरी दलील
तैरती सुधियों की कंदील

- डा रामेश्वर प्रसाद सारस्वत

१ नवंबर २०२१

     

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