अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

     

         झूल रहे कंदील

झूल रहे कंदील हवा में
क्या क्या रंग दिखाएँ

रोशनियाँ तीली ने बदलीं
चकरी हुई सयानी
सहमी सहमी जले फुलझड़ी
गुपचुप कहे कहानी
राकेट फुर्र हुये तेजी से
वापस घर न आएँ

आँगन में जगमगा रही है
ये बनावटी लड़ियाँ
यों तो जले दीप बाती
पर, टूट रही है कड़ियाँ
बिखर रहे माला के मोती
शायद ही जुड़ पाएँ

हुई विलीन कहाँ ना जाने
वह खुशियों की दुनिया
तारे गिनती बैठी है
आँगन में छोटी मुनिया
शायद कोई तारा टूटे
खुशियाँ घर में आएँ

- शशि पुरवार

१ नवंबर २०२१

     

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter