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         भावना की कंदील में


आयेगी बनकर कंदील
मिट जायेगा आँखों में छाया अँधेरा
निशा घनेरी
बीत जाने की प्रतीक्षा में
सवेरा!


एक कंदील की आस में
बीत गये दिन...महीने...साल...
मैं जानता हूँ- मिटेगी तमस की सत्ता
शेष है कुछ समय और
मैं करूँगा प्रतीक्षा!


आस्था के चरखे पर
मैंने काते विश्वास के सूत
भावना की कंदील में
देखा तो-
सपनों ने बुन लिया था-
आकाश!


घने जंगलों के साये में
पास दिखी एक कंदील
हरे-भरे हो गये मुरझाये स्वप्न
जाग गया सूरज
बीत गयीं घनेरी रातें
जितने मुँह
उतनी बातें!


लाल-हरी चूड़ियों की खनक
कानों में गूँजी
आँखों के सामने घूम गयी
यादों की 'रील'
मन रौशन
ज्यों कंदील!

- डॉ. शैलेश गुप्त 'वीर'
१ नवंबर २०२१

     

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