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         श्रम का दीपक


कर्म पथ पर स्वर्ण किरण से
श्रम का दीपक है आलोकित

मन मुंडेर पर चमक रहीं, आशा की कंदीलें
मुस्कानों की धवल वर्तिका, घृत नेह का पी लें
सहस्त्र लौ के झिलमिल तारे
भू मंडल पर लगते शोभित

उम्र चौखटा पर रच डालें, अनुभव की रंगोली
रिश्तों की जब खील भरी तो रखे बताशा बोली
दूर गगन से देख धरा को
चाँद सितारे होते मोहित

दीयों ने पाती भेजी है, अमा, अमा न रहने पाए
गृह लक्ष्मी की सजधज में, कंगना सातों सुर जगाए
घर आँगन में बने घरौंदे
बिटिया से होते हैं पोषित

कन्याओं की हँसी फुलझड़ी, बहुरंगी हैं ज्योति
तिमिर को उपहार मिला है, जगमग लौ के मोती
घर घर रौशन हो भारत का
होती रहे दिवाली रोपित

- ऋता शेखर 'मधु'
१ नवंबर २०२३
   

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