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								अवनि का शृंगार कर लें |  
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                                                  | दीप की अवली बनाकर 
								अवनि का शृंगार कर लें ज्योति का उत्सव मनाएँ दीप सा
 व्यवहार कर लें
 
 तन, ये माटी दीप जैसा मन की बाती जगमगाये
 स्नेह पूरित तेल इसमें लोक-मन का तम मिटाए
 प्रेम फैलाये उजाला और हम
 उपकार कर लें
 
 भाव के रंग भर रँगोली हृदय की देहरी सजाएँ
 प्रीत बंदनवार संग, सौहार्द की छवि झिलमिलाएँ
 सृष्टि में फैली अमाँ लघु-दीप से
 उजियार कर लें
 
 चल पड़ीं अल्हड़ हवाएँ मूक दर्शक हैं दिशाएँ
 बज उठी वीणा मधुर, हैं गूँजती पावन ऋचाएँ
 इस धरा से उस गगन तक प्रेम का
 विस्तार कर लें
 
 कालिमाएँ स्याह चादर ओढ़ कर बैठी हुई हैं
 कलुषताएँ मन के भीतर बेवजह ऐंठी हुई हैं
 थी अभी तक धुंध पर अब ज्योतिमय
 संसार कर लें
 
 कामना अज्ञानता के भवन की चेरी रही है
 लालसाएँ भ्रमित, उनकी सत्य से दूरी रही है
 आओ हिलमिल सत्य, सुंदर, शिवं को
 गलहार कर लें
 
 - डॉ मंजुलता श्रीवास्तव
 १ नवंबर २०२४
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