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उत्तर दिशि सूरज चले
 
उत्तर दिशि सूरज चले, शोभित हो नव कान्ति
उत्सव उलसित हो धरा, मने मकर संक्रांति

तीरथ में मेले लगें, पूजा- जप- तप- दान
अर्पण तर्पण से करें, पुरुखों का सम्मान

तिल गुड़ आपस बाँटते, बैर भाव सब भूल
मधुर वचन अब बोल के, नष्ट करें दुख शूल

कहते 'बिहू' 'माघी' कहीं, 'पोंगल' इसके नाम
स्वाद भरे व्यंजन बनें, नेह मिलन हर धाम

सकल सृष्टि आधार हैं, और नहीं समकक्ष
जीवित सूरज से धरा, दर्शन दें प्रत्यक्ष

- ज्योतिरमयी पंत 
१२ जनवरी २०१५

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