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ओ रे सूरज
 


ओ रे सूरज
जादूगरी करके
ठंड को गरमाती
धूप ले गये
सर्द अनल संग
छोड़- कहाँ सो गए


आँख मिचौनी
सूरज धूप खेले
पुरवाई संग में
धुंध पीकर
उत्तरायण आकर
पतंग संग डोले


सक्रांति काल
बदल गयी देखो
धूप की चाल
उत्तरायण
आके बदला चोला
पतंग संग डोला


नयी ऊर्जा से
मकर सक्रांति पे
नभ- पतंग चढ़ा
मन मिला के
एकता पाठ पढा
नव संदेशा लाते


मैं सूरज हूँ
धूप को बहा कर
दक्षिणायण और
नभ छोर पे
उत्तरायण तक
मेरे हैं चारों धाम


सूर्य घोडों ने
उत्तरायण आके
नव खिड़की खोली
धूप पतंगें
सक्रांति के नभ में
चिड़िया बन डोली


सक्रांत पर्व
नभ कंगूरे पर
धूप सखा संग
रंग बिरंगी
चिड़िया सी पतंगे
बांध मन की डोर
लहराती उड़ती

- डॉ सरस्वती माथुर
१२ जनवरी २०१५

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