अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

मेरे घर भी आए दिनकर
 
मेरे घर भी आए दिनकर

नभ का हाथ गुलाल हो गया
मुख प्राची का लाल हो गया
रवि आते हैं तम जाता है
लुका छिपी का खेल हो गया

बदली के पीछे से देखो
ताँक झाँक करते रह रहकर

मादक सी अँगड़ाई लेती
कलियों की मुस्कान देख लो
कोयल गाती है किस धुन में
उसका प्यारा गान देख लो

ताली बजा रहें है पत्ते
झूम झूमकर नाचे तरुवर

इन्द्र धनुष के सात रंग से
आये सूर्य करके शृंगार
ह्रदय प्रफुल्लित हुआ देखकर
खिला खिला सा यह संसार

नभ का लो सम्राट आ गया
उजले घोड़ों पे सज धजकर

- राम शिरोमणि पाठक
१२ जनवरी २०१५

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter