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सूरज तपता रहा
 
सूरज तपता रहा गगन में!
कालखण्ड के हर
पल-क्षण में

बनते मिटते रहे रात दिन
सदियों का होता आवर्तन
चमक रहा पर वह
कण-कण में

ज्योतिष की गणनाएँ होतीं
धरती और चाँद की ज्योति
बन कर चलता रहा
लगन में

तिथि त्योहारों में मौसम में
फूल परागों बागों वन में
बिखराता जीवन
जन-जन में

दिन भर नदियों के दर्पण में
रूप नया अँधियारे पन में
हँसता दीपों के
नर्तन में।

- रंजना गुप्ता
१२ जनवरी २०१५

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