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सूरज के घोड़े
 
सूरज से भी बढ़े चढ़े हैं
सूरज के घोड़े
रथ के आगे सजे खड़े है
सूरज के घोड़े

लो सूरज के
हाथों से वल्गाएँ छूट गईं
बेलगाम हो गए सभी सीमाएँ टूट गईं
किसको है अब होश कि इन
सातों के मुख मोड़े

इनकी टापों
की दहशत है दसों दिशाओं में
बदहवास ये चलें कि है सनसनी हवाओं में
अजब थरथरी उधर भक्त जन
खड़े हाथ जोड़े

जाने क्या
रौंदे क्या कुचले इनकी मनमानी
लगता है अब तो सिर तक आ जाएगा पानी
आनेवाला कल शायद इनके
तिलिस्म तोड़े

- सत्यनारायण
१२ जनवरी २०१५

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