अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

सूरज जलते रहना
 
कर्मभाव के आदिदेव तुम
सूरज जलते रहना।

अभी हुए थे
मेघ- गुच्छ की
ओट जरा- से
दुष्ट शीत ने
फिर अपने
नाखून तराशे
आहत करता है मेघों का
असमय छलते रहना।

तम का राजा
है सियार- सा
घात लगाए
अवसर आए
उजियारे को
नोचे- खाए
सृष्टि हितों में
तिमिर भाव को
खलते, खलते रहना।

- शशिकांत गीते
१२ जनवरी २०१५

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter