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बादल करे प्रबंध
 

 

तप्त धरा की प्यास का, बादल करे प्रबंध
मिट्टी से खुशबू उठे, बन कर प्रेम सुगंध

सूरज में चिनगारियाँ, धरा फूस का ढेर
वन उपवन सूखे खड़े, सावन में क्यों देर

जलते तन पर छाँव दे, बादल का किरदार
सूरज जब अभिशाप हो, सावन इक उपहार

मानसून दे कर चला, सागर को आभार
जहाँ प्यास की अंजुरी, डाली जल की धार

मदिरालय से मेघ हैं, बूँद बूँद में सोम
गरजी चमकी दामिनी, जश्न मनाता व्योम

भरे भरे पोखर लगें, ज्यों विरहिन के नैन
धरा ढकी क्यों मेघ से, सूरज है बेचैन

- संध्या सिंह
२८ जुलाई २०१४

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