अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर


बरस रहे सावन के बादल
 

 

बरस रहे सावन के बादल
आज हमारे गाँव में

अम्मा फिसल गईं आँगने में
छटक गई खाने की थाली
हँसती हुई बहू दौड़ी तो
देने लगीं बहू को गाली

मना किया सौ बार मगर है
पहिया तेरे पाँव में

मेंड़ बाँधने हीरा निकले
लिये फावड़ा ओढ़े बोरा
खाद छींटती कमली भीगे
भीग रहा कमली का छोरा

गायें आकर खड़ी हो गईं
हैं बरगद की छाँव में

चले आ रहे लोग घाट पर
वर्षा थमी साँझ वेला है
सबको नदी पार जाना है
नागपंचमी का मेला है

पियरी पहने बहुएँ आकर
बैठ गई हैं नाव में

- अवध बिहारी श्रीवास्तव
२१ जुलाई २०१४

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter