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हवाओं ने शंख फूँके
 

 
हवाओं ने शंख फूँके
दिशाओं में बजे मादल
उमड़ कर के घुमड़ कर के
व्योम में छा गये बादल

सागरों से नीर लेकर
धरित्री की पीर लेकर
उड़ चले बनकर पखेरू
धूपवर्णी चीर लेकर
आँजकर अँधियार काजल

शिखर का अभिषेक करते
सरित सर को एक करते
सृष्टि के संताप हरने का
जतन प्रत्येक करते
हुए पुलकित खेत जंगल

झमझमाझम मेह बरसे
निर्झरों सा प्राण हरसे
नींद से जागीं लताएँ
विटप क्षुप तृण पात सरसे
नच रहे हो मोर पागल

-डॉ राम वल्लभ आचार्य
२१ जुलाई २०१४

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